Site icon 𝘎𝘢𝘰𝘯 𝘚𝘩𝘢𝘩𝘢𝘳

राजस्थान के गांव में स्कूल की छत गिरी 7 बच्चों की मौत, लेकिन ये सिर्फ हादसा नहीं था

Rajasthan School Collapse

Rajasthan School Collapse

Rajasthan School Collapse: मैंने सब कुछ खो दिया है… मेरे सिर्फ़ दो बच्चे थे और दोनों चले गए। मेरा घर खाली हो गया है… आँगन में खेलने वाला कोई नहीं बचा” ये शब्द उस मां के हैं जिसके दोनों बच्चे जिसमें 12 साल की मीना और 7 साल का कान्हा थे, राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदा गांव में स्कूल गिरने की वजह से अपनी जान गंवा बैठे. घर से खुशी-खुशी स्कूल गए थे लेकिन लौटकर वो घर नहीं आए। स्कूल की छत उनके सपनों के साथ गिर गई।

राजस्थान के पिपलौदी गांव में 26 जुलाई की सुबह जब 7 बच्चों की लाशें मिट्टी में लिपटी बाहर निकाली गईं, तब सिर्फ एक स्कूल की नहीं एक व्यवस्था की दीवार ढह गई थी. ये हादसा नहीं था, ये प्रशासनिक लापरवाही की कब्र पर खड़ा ‘सिस्टम‘ था.

आंकड़ों में बदतर है राजस्थान के गांव में स्कूलों की हालत

राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज भी हजारों स्कूल ऐसे हैं, जिनकी छतें खुद डर से कांपती हैं. जिला सूचना प्रणाली की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 32% ग्रामीण स्कूलों में बिजली नहीं है. वहीं 11% स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं है.

रिपोर्ट के अनुसार कई स्कूल ऐसे हैं जहां भवन आधा गिरा हुआ है, लेकिन पढ़ाई जारी है. रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 9% स्कूलों में पेयजल की सुविधा नदारद है.

22% स्कूल जर्जर हैं

वहीं राजस्थान हाईकोर्ट एकल पीठ के न्यायमूर्ति ढांड ने बताया कि राज्य सरकार अपने बजट का 6% हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है, लेकिन बुनियादी ढांचे बेकार हैं. एक सर्वेक्षण से पता चला है कि राजस्थान सहित 12 राज्यों में 22% स्कूल भवन जीर्ण-शीर्ष हैं. वहीं 31 % इमारतों में दरारें हैं.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की एक रिपोर्ट में साफ लिखा गया था कि

“स्कूल भवन की दुर्दशा कई जगह बच्चों की जान के लिए खतरा बन चुकी है”.

तो फिर सवाल उठता है कि ये मौतें क्या सिर्फ ‘एक्सीडेंट’ थीं?

पिपलौदी में क्या हुआ?

सुबह की तीसरी घंटी बज चुकी थी. क्लास में 30 से ज्यादा बच्चे बैठे थे. अचानक से पुरानी छत में दरार आई और पूरा हिस्सा भरभरा कर गिर गया.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि स्कूल की मरम्मत की फाइल पिछले दो साल से ब्लॉक ऑफिस में धूल खा रही थी.

कुछ महीने पहले ही पंचायत की बैठक में एक ग्रामीणों ने इस मुद्दे को उठाया था. लेकिन ‘बजट नहीं है’ कहकर उसे टाल दिया गया. ग्रामीणों के अनुसार उनसे कहा गया कि 200-200 रुपये प्रत्येक परिवार इकट्ठा करे तो स्कूल की मरम्मत करा दी जाएगी.

सिस्टम की चुप्पी: हादसे के बाद की हकीकत

हादसे के बाद शिक्षा विभाग ने स्टेटमेंट दिया,

“मामले की जांच की जा रही है”
“दोषियों पर कार्रवाई होगी”
“बच्चों के परिवारों को मुआवज़ा मिलेगा”

मगर सवाल ये है कि जब तक कार्रवाई होगी, तब तक कितने और बच्चों की ज़िंदगी दांव पर होगी?

हाईकोर्ट ने इस घटना पर स्वतः संज्ञान लिया है. कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि

“राज्य के स्कूलों में बुनियादी ढांचे की समीक्षा कब और कैसे की जाएगी. बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं?”

लड़कियों के लिए खतरा और भी बड़ा

ये हादसा सिर्फ शिक्षा से नहीं जुड़ा है. यह सामाजिक असमानता और लैंगिक भेदभाव से भी जुड़ा है।

जब स्कूल जर्जर होता है. लड़कियों को सबसे पहले रोका जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांव की लड़कियों का dropout rate लड़कों से 1.5 गुना ज़्यादा है. खासकर उन इलाकों में जहां स्कूल दूर हैं या असुरक्षित हैं.

सवाल जो पूछे जाने चाहिए:

“गांव शहर” की अपील:

सरकार,प्रशासन और पंचायतें जवाबदेह हों, लेकिन साथ ही हर गांव का नागरिक, हर पंचायत सदस्य ये सवाल उठाए कि क्या हमारे गांव का स्कूल सुरक्षित है?

– गांव शहर

Exit mobile version