Maa Mundeshwari Temple: क्या आप जानते हैं कि भारत का सबसे प्राचीन मंदिर कहां पर मौजूद है, जहां अभी भी पूजा होती है. ना ही वो दक्षिण भारत में है और ना ही वो मध्य प्रदेश में है. वो मंदिर बिहार के कैमूर जिले में मौजूद है. जी हां! बिहार के कैमूर जिले की पहाड़ी पर मौजूद मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत का सबसे पुराना जीवित मंदिर है. वहां न शोर होता है, न चकाचौंध. सिर्फ कुछ टूटे हुए पत्थर, एक कच्चा रास्ता और कहीं दूर मंदिर की घंटियों की धीमी आवाज़. उसी पहाड़ी की चोटी पर बैठी हैं मां मुंडेश्वरी. एक ऐसी देवी जिसके बारे में मान्यता है कि उसकी पूजा कभी नहीं रुकी.
लोग कहते हैं कि ये मंदिर 1800 साल से भी ज़्यादा पुराना है, लेकिन यहां हर दिन सूरज की पहली किरण के साथ मां की आरती वैसी ही होती है, जैसी हजारों साल पहले होती थी. देश के बाकि मंदिरों की तरह यहां पर कोई पुजारी पूजा नहीं कराता है. अगर आप चाहें तो खुद से ही पूजा कर सकते हैं.
अष्टकोणीय है मां मुंडेश्वरी का मंदिर
यह मंदिर कोई भव्य महल जैसा नहीं है. न ही यहां संगमरमर की सीढ़ियां हैं. यह तो पत्थरों से बनी एक इमारत है. मां मुंडेश्वरी का मंदिर अष्टकोणीय आकार का है, जिसमें नक्काशी की गई दीवारें और समय की मार झेलती हुई मूर्तियां हैं, लेकिन जो लोग यहां आते हैं, वो कहते हैं कि, “मां की मूर्ति देखकर ऐसा लगता है जैसे वो हमें देख रही हों।”
मां मुंडेश्वरी धाम, कोई मन्नत लिए आता है, तो कोई चुपचाप आकर सिर्फ माथा टेकता है. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी हो जाती है. इसलिए तो बिहार तो बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश और झारखंड तक से लोग मां के दर्शन करने आते हैं.
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बिना एक बूंद खून बहाये होती है बकरे की बलि
मां मुंडेश्वरी धाम का एक चमत्कार यह भी है कि यहां बकरे की बलि तो होती है, लेकिन बिना एक बूंद खून बहाए. श्रद्धालु बस बकरे को मां के सामने ले जाकर झुकाते हैं और बलि पूरी हो जाती है. मां मुंडेश्वरी की मान्यता है कि “जिसका मन साफ है, उसी की मन्नत पूरी होगी।”
मां के दरबार में होता रहता है चमत्कार
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि कई बार मंदिर की घंटियां अपने आप बज उठती हैं.वहीं कोई बच्चा अचानक मां को देखकर मुस्कुरा उठता है, तो कोई बुजुर्ग वहां बैठकर आंखें बंद कर लेता है. ये सब मां मुंडेश्वरी की ही लीला है.
इतिहासकार भी मानते हैं मां का चमत्कार
इतिहासकार कहते हैं कि ये भारत का सबसे पुराना ‘जीवित’ मंदिर है. यानी जहां पूजा आज भी जारी है। यहां कभी कोई युद्ध हो, बारिश हो, बिजली गिरे, लेकिन दीया नहीं बुझता.
ब्रिटिश काल में जब इस मंदिर का ज़िक्र पहली बार अंग्रेज़ अफसरों ने किया, तब भी यहां पूजा हो रही थी. ASI की रिपोर्ट भी मानती है कि मंदिर पहली शताब्दी में बना था और तब से अब तक, किसी ने मां के दरबार में ताले नहीं लगाए.
मां की ममता का इलाका
रामगढ़ गांव की कैमूर पहाड़ी श्रृंखला पर यह मंदिर स्थित है. यहां के लोग मां से जुड़ाव किसी देवी की तरह नहीं, बल्कि परिवार की तरह रखते हैं। बच्चे स्कूल जाने से पहले माथा टेकते हैं. किसान हल उठाने से पहले मां को प्रणाम करते हैं. और तो और लड़कियां विवाह से पहले मां के पास जाकर उनके आंगन की मिट्टी माथे पर लगाती हैं. ताकि नया घर भी पुराने घर की तरह खुशहाल और धन-धान्य से परिपूर्ण हो.
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