Kongthong village: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय (Meghalaya) का जिक्र अक्सर उसकी हरियाली,बादलों से ढकी पहाड़ियों और आदिवासी संस्कृति के लिए होता है, लेकिन इसी राज्य के एक छोटे से गाँव कोंगथोंग (Kongthong) में एक ऐसी परंपरा जीवित है. जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि पहचान सिर्फ नाम से नहीं भावना और आवाज से भी बन सकती है.
इसकी वजह तलाशें, तो ये परंपरा अनोखी ही नहीं बल्कि बेहद दिलचस्प भी है.यहां बच्चे को जन्म के समय कोई नाम नहीं दिया जाता है. बल्कि मां उसके लिए एक खास धुन (melody) सोचती है.ये धुन कभी किसी चिड़िया की आवाज़ जैसी हो सकती है या तो कभी एक साधारण सुर जैसा. यही धुन उस बच्चे की पहचान बनती है.
सैकड़ों साल पुरानी है Kongthong village परंपरा
जैसा कि जानकार मानते हैं यह परंपरा न केवल सैकड़ों साल पुरानी है,बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरतों से उपजी है. नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (North Eastern Hill University) के अंग्रेजी विभाग में रिसर्च कर रहे स्कॉलर ईएफ सैंक्ले (EF Sankhle) बताते हैं कि ये परंपरा आदिवासी जीवनशैली से निकली है. जब लोग शिकार पर जाते थे तो साथी को पहचानने और बुलाने के लिए नाम की जगह यही धुन काम आती थी. इससे दूसरे समूहों को भनक भी नहीं लगती थी कि कोई पास ही शिकार पर है.
यह भावनाओं की भाषा है
यह सिर्फ एक सामाजिक जरिया नहीं है बल्कि भावनाओं की भाषा है. कोंगथोंग में जब कोई किसी को बुलाता है, तो उसकी आवाज़ की पिच, गति और सुर बता देते हैं कि वह गुस्से में है या प्यार से पुकार रहा है.यह एक ऐसा संवाद है जो बिना शब्दों के भी सब कुछ कह जाता है.
सरकार ने Kongthong village को व्हिस्लिंग विलेज नाम दिया
फिलहाल इस गांव की पहचान पूरी दुनिया में उसकी इसी सांस्कृतिक धरोहर की वजह से बनी है.अब इस परंपरा को संरक्षित करने की कोशिशें भी हो रही हैं. कुछ वर्षों पहले सरकार ने इस गांव को व्हिस्लिंग विलेज (Whistling Village) के नाम से प्रचारित करना शुरू किया था. जिसकी वजह से पर्यटकों का ध्यान यहां खिंचा और गांव को सीमित ही सही पर रोज़गार के नए रास्ते मिलने लगे.
सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक बन गई है यह परंपरा
इसका असर यह पड़ा है कि धीरे-धीरे यह गांव न केवल सांस्कृतिक नक्शे पर आया, बल्कि बाहरी दुनिया से उसका संपर्क भी बढ़ा. पहले जहां यह परंपरा सिर्फ जरूरत की चीज़ थी. अब यह सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक बन गई है. बच्चे स्कूलों में अपनी धुनों के बारे में खुलकर बात करते हैं और कई बार इन धुनों को रिकॉर्ड कर ऑनलाइन साझा भी किया गया है.
लड़की को प्रभावित करने के लिए भी जरूरी है चीजें
एक दिलचस्प बात यह भी है कि गांव में जब कोई युवक विवाह के लिए लड़की को प्रभावित करना चाहता है. तो वह अपनी सबसे मधुर धुन गुनगुनाता है. माना जाता है कि जो धुन लड़की के दिल को छू जाए, वहीं उसका जीवन साथी बनता है. यह परंपरा जितनी खूबसूरत लगती है उतनी ही दिलकश भी है.
कोंगथोंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के लोग अब भी मातृसत्तात्मक समाज में रहते हैं, यानी संपत्ति हो या परिवार या परंपराओं की विरासत सभी मां की ओर से चलती है.शायद इसी कारण मां के द्वारा चुनी गई धुन को इतना पवित्र माना जाता है.
– गांव शहर