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Bengaluru Language Dispute

Bengaluru Language Dispute: बेंगलुरु में क्या हिंदी बोलना सच में बन गयी समस्या?

Posted on July 10, 2025July 11, 2025 by govind singh

Bengaluru Language Dispute: बेंगलुरु, जिसे हम देश की टेक राजधानी भी कहते हैं, इन दिनों एक युवा महिला यात्री और ऑटो चालक के बीच हुई बहस के चलते सुर्खियों में है. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें ऑटो चालक ने महिला से कन्नड़ में बात करने को कहा क्योंकि वह हिंदी बोल रही थी. यह क्लिप इस हद तक फैल गई कि कई बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने इसे प्रमुखता दी है.

उस दिन महिला ने बताया कि उसने रैपिडो एप पर ₹296 में ट्रिप बुक की थी. लेकिन ऑटो चालक ने ₹390 की मांग की जिसमें वह कन्नड़ बोलने के लिए दबाव भी डालने लगा. महिला ने सहमति नहीं जताई तो ऑटो चालक झल्ला गया और बोला कि “यहाँ हिंदी नहीं चलेगी, कन्नड़ बोलो वरना उतर जाओ”

वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर भारी चर्चा शुरू हो गई. कई लोग ड्राइवर की भाषा-आधारित मांग का समर्थन कर रहे थे तो कई विरोध में थे. कुछ लोगों का मानना है कि स्थानीय भाषा का सम्मान करना शहर में रहना भी जरूरी है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भाषा के आधार पर किसी के साथ मारपीट या किसी को डराना बिल्कुल सही नहीं है. इसपर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिये.

लोगों की प्रतिक्रियाएँ

बड़ी संख्या में लोग ट्वीट्स और टिप्पणियों के जरिए अपनी राय रख रहे हैं.
एक यूज़र ने लिखा कि

यह स्वाभाविक है कि जब कोई भाषा, कन्नड़ में बात शुरू करे, तो पचाना आसान होता है. अगर थोड़ी कोशिश करोगे, तो ही बदलाव दिखेगा

वहीं किसी दूसरे ने कहा कि

“स्थानीय भाषा का आदर करना चाहिए, लेकिन जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए”.

इस बहस में कुछ ने इसे दक्षिण भारत और उत्तर भारत के बीच टकराव की शुरुआत कहा है तो कुछ इसे सामान्य सांस्कृतिक सम्मान का मामला बता रहे हैं.

मीडिया और विशेषज्ञों की टिप्पणियाँ

Financial Times ने इसे एक बड़े राजनैतिक घटनाक्रम से जोड़ा है. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना सिर्फ शहर की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश में भाषा और पहचान की राजनीति को दर्शाता है.

स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि अब यह मुद्दा सिर्फ बेंगलुरु तक सीमित नहीं रहेगा. उनका कहना है कि इससे साबित होता है कि भारत की विविधता में स्थानीय भाषाओं का सम्मान करना कितना जरूरी है. राजधानी-शहरों में हिंदी और अंग्रेज़ी का बोल-बाला है, पर स्थानीय लोग कन्नड़ को उनके सांस्कृतिक अधिकार के रूप में देखने लगे हैं.

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शांति की राह आसान नहीं

चेन्नई और मुंबई जैसे महानगरों में भी भाषाई सौहार्द टूट चुका है, लेकिन वहाँ लोग हल्के-फुल्के तरीके से भाषा का आदर करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बेंगलुरु को भी इसी राह पर चलना चाहिए जहां कोई संवाद थम जाए पर हिंसा या बहिष्कार न हो.

महिला यात्री जिसे वीडियो में दिखाया गया था, उसने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि उसे कन्नड़ सीखने की इच्छा है लेकिन जब यह भाषा को लेकर एक सिविल बातचीत बन जाए, जमकर बहस हो तो बात गहराई तक नहीं जाती.

ऑटो यूनियनों के द्वारा अगर ये मांग सही से की जाती, तो कन्नड़ नहीं जानने वाले लोग भी कन्नड़ सीखने की कोशिश करते. लोग इसे सहयोग की भावना में ले सकते हैं.

भाषा सम्मान बनाम जोर जबरदस्ती

यह घटना यह साफ कर पाती है कि बेंगलुरु जैसे शहर में जब भाषा सवाल बन जाए, तो पूरे देश की पहचान खटखटाने लगती है. भाषा को लेकर प्रेम और आदर होना चाहिए, लेकिन उसकी आड़ में किसी की स्वाभाविक आवाज़ दबनी नहीं चाहिए. किसी प्रान्तीय भाषा के दबाव में हिंदी बोलने वाले प्रवासी नहीं डरें बल्कि संवाद के नए रास्ते बनें.

आगे क्या होगा यह अब थोड़ी राजनीति और थोड़ी सामाजिक समझ से तय होगा. लेकिन इतना स्पष्ट दिखता है कि अगर बेंगलुरु पूरे आत्मविश्वास और सम्मान के साथ संवाद की राह अपनाए तो यह बहस समापन की ओर बढ़ सकती है.

– गांव शहर

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