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uttarkashi vishwanath temple

Uttarkashi: वो पवित्र नगर जहां भगवान शिव ने कलियुग में निवास का किया है वादा, यहां के हर पत्थर में बसते हैं शिव

Posted on August 5, 2025 by govind singh

Uttarkashi: अगर आप ऋषिकेश से गंगोत्री की ओर बढ़ रहे हैं, तो करीब 154 किलोमीटर दूर एक शांत-सा शहर पड़ता है उत्तरकाशी (Uttarkashi). नाम में ही काशी है और इसकी पहचान भी उसी से जुड़ी हुई है. कहते हैं जब कलियुग में बनारस का आध्यात्मिक तेज मंद पड़ जाएगा. तब भगवान शिव उत्तरकाशी में निवास करेंगे. शायद यही वजह है कि यहां का भगवान विश्वनाथ मंदिर उतना ही पूजनीय और पवित्र माना जाता है जितना कि काशी का विश्वनाथ धाम.

uttarkashi vishwanath temple
उत्तरकाशी विश्वनाथ मंदिर (साभार-गूगल मैप)

शिव का ठिकाना

उत्तरकाशी शहर भागीरथी नदी के किनारे बसा है. शहर छोटा है, लेकिन यहां का वातावरण कुछ ऐसा है कि एक बार आने के बाद मन यहीं रुक जाना चाहता है. मंदिर शहर के बीचोबीच है और उसके सामने की सड़क से ही गंगा दिखती है उत्तरवाहिनी बहती हुई. यह एक दुर्लभ दृश्य है, क्योंकि गंगा दक्षिण की ओर बहती हैं. लेकिन यहां वो उत्तर की ओर मुड़ी हैं. मान्यता है जहां गंगा उत्तर की ओर बहती हैं वहां शिव की विशेष कृपा रहती है.

मंदिर का इतिहास और बनावट

विश्वनाथ मंदिर की बनावट कत्यूरी शैली की है ऊंचा शिखर, मोटे पत्थर की दीवारें और गढ़वाली कारीगरी की झलक. कहते हैं कि यह मंदिर हजार साल से भी पुराना है, लेकिन समय-समय पर इसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण होते रहे हैं. वर्तमान स्वरूप सन् 1857 में गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह द्वारा बनवाया गया.

uttarkashi vishwanath temple
उत्तरकाशी विश्वनाथ मंदिर (साभार-गूगल)

मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग बड़ा और प्रभावशाली है. जब आप गर्भगृह में प्रवेश करते हैं, तो एक अलग ही ऊर्जा का अनुभव होता है. घी और भस्म की मिली-जुली सुगंध, घंटियों की धीमी-धीमी ध्वनि और पुजारियों का उच्चारण सब कुछ मिलकर एक आध्यात्मिक वातावरण बना देता है.

पौराणिकता और मान्यताएं

कहते हैं कि जब देवताओं ने भगवान शिव से पूछा कि कलियुग में वो किस जगह रहेंगे. तो उन्होंने कहा “उत्तर की काशी में.” इसीलिए यह स्थान ‘उत्तरकाशी’ कहलाया. यहां के बुजुर्ग आज भी सुबह गंगा स्नान के बाद मंदिर की परिक्रमा करते हुए कहते हैं “काशी में जो मिलेगा, वो उत्तरकाशी में भी मिलेगा, पर यहां भीड़ नहीं मिलेगी.”

शक्ति मंदिर: मां दुर्गा की गवाही देता त्रिशूल

विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने एक और मंदिर है शक्ति मंदिर. यहां एक विशाल त्रिशूल रखा हुआ है जो देखने में ही गजब लगता है. स्थानीय लोग कहते हैं कि यह त्रिशूल मां दुर्गा ने असुरों का वध करने के लिए चलाया था और आज तक कोई भी इसे हिला नहीं सका. वैज्ञानिकों ने भी इसकी जांच की है लेकिन इसकी गहराई और स्थिरता आज भी रहस्य बनी हुई है.

त्योहारों में लगता है जनसैलाब

शिवरात्रि, सावन और गंगा दशहरा जैसे अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है. कार्तिक मास में मंदिर में विशेष पूजा होती है और दूर-दराज से लोग दर्शन के लिए आते हैं. कई श्रद्धालु तो गंगोत्री जाते वक्त पहले यहां रुकते हैं और गंगाजल भरकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.

यहां आकर क्यों कुछ बदल जाता है?

आप चाहे कितने भी तनाव में हों इस मंदिर में कुछ देर बैठने के बाद लगता है जैसे शरीर शांत हो गया हो. मंदिर के पीछे की ओर बैठिए. जहां गंगा की कलकल ध्वनि साफ सुनाई देती है और सामने हिमालय की बर्फीली चोटियां नजर आती हैं. आंखें बंद करिए और कुछ देर सांसों पर ध्यान दीजिए. यही है उत्तरकाशी का अनुभव. ना शोर, ना दौड़ सिर्फ शिव की उपस्थिति.

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कैसे पहुंचे भगवान विश्वनाथ मंदिर?

  • सड़क से: देहरादून, ऋषिकेश या हरिद्वार से सीधी बसें मिल जाती हैं. टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है.
  • रेल से: नजदीकी स्टेशन ऋषिकेश और देहरादून हैं.
  • हवाई मार्ग: देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट यहां से लगभग 180 किमी दूर है.

भगवान विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी में सिर्फ पूजा नहीं होती, यहां आत्मा को सुकून मिलता है. यह मंदिर आपको खुद के करीब ले जाता है जैसे भगवान शिव खुद कह रहे हों, “अब और कहीं मत जाओ, यहीं बैठ जाओ.”

अगर आपने काशी देखी है, तो उत्तरकाशी ज़रूर आइए. और अगर शिव को अपने भीतर महसूस करना चाहते हैं. तो इस मंदिर में आकर एक बार आँखें बंद करके बैठ जाइए. उत्तरकाशी खुद आपको बुला लेगा.

– गांव शहर

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