Tripund Tilak Ka Mahatva Aur Lagane Ki Vidhi: सनातन धर्म में पूजा-पाठ का आरंभ बिना तिलक लगाए अधूरा माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि माथे पर लगाया गया तिलक न सिर्फ हमारी भक्ति को दर्शाता है, बल्कि वह भगवान का आशीर्वाद भी बनकर हमारे शरीर और मन पर असर करता है.
इसी तिलक परंपरा में एक बहुत खास और दिव्य स्वरूप है त्रिपुंड. यह वही तीन रेखाएं होती हैं, जो शिवभक्त अपने ललाट पर लगाते हैं. यह केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक प्रतीक है, जिसे महादेव का प्रसाद माना गया है.
त्रिपुंड का मतलब क्या है?
हरिद्वार की गंगा सभा से जुड़े तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित बताते हैं कि त्रिपुंड का संबंध भगवान शिव के तीन नेत्रों से है. जिसमें ज्ञान, शक्ति और वैराग्य आते हैं. ये तीन रेखाएं शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने का प्रतीक मानी जाती हैं.
वासुदेवोपनिषद के अनुसार, त्रिपुंड केवल शिव का ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का प्रतिनिधित्व करता है. यही नहीं, यह तीन व्याहृति मंत्रों और तीन छंदों का भी प्रतीक है, जो वेदों में बेहद महत्वपूर्ण माने गए हैं.
पंडित जी के अनुसार,
- ऊपरी रेखा बृहस्पति (गुरु ग्रह) की प्रतीक है,
- मध्य रेखा शनि देव की,
- और निचली रेखा भगवान सूर्य नारायण की.
- यह त्रिपुंड न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाता है, बल्कि हमें अपने कर्मों और विचारों को सात्विक बनाए रखने की प्रेरणा भी देता है.
त्रिपुंड से मिलने वाला पुण्य और लाभ
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के वेद विभागाध्यक्ष प्रो. देवेंद्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि शिव पुराण में त्रिपुंड की अपार महिमा बताई गई है.
उनके अनुसार,
“अगर कोई व्यक्ति किसी के माथे पर लगे त्रिपुंड का दर्शन मात्र कर ले, तो उसके सारे अमंगल दूर हो जाते हैं. और यदि स्वयं यह त्रिपुंड धारण कर लिया जाए, तो जीवन में पुण्य, आयु, तेज और मानसिक शांति स्वतः प्राप्त होती है.”
त्रिपुंड को अगर भस्म से लगाया जाए, तो इसका पुण्य और भी अधिक बढ़ जाता है. भस्म को स्वयं शिवजी ने अंगों पर धारण किया था, और यही कारण है कि यह महाप्रसाद का स्वरूप माना गया है.
त्रिपुंड लगाने की सही विधि
त्रिपुंड कोई सामान्य तिलक नहीं है, इसलिए इसे लगाने की विधि और भावना दोनों बहुत मायने रखते हैं.
कैसे लगाएं त्रिपुंड:
- स्नान करके शुद्ध हो जाएं.
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें.
- अपने बाएं हाथ की हथेली में थोड़ी भस्म लें और उसमें कुछ बूंद जल मिलाएं.
फिर नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए भस्म को अभिमंत्रित करें:
ॐ अग्निरिति भस्म. ॐ वायुरिति भस्म. ॐ जलमिति भस्म. ॐ व्योमेति भस्म. ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म. ॐ मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति.
अब शिवलिंग पर पहले त्रिपुंड अर्पित करें, फिर उसी भस्म को प्रसाद रूप में अपने ललाट, ग्रीवा, दोनों भुजाओं और हृदय पर लगाएं.
इस दौरान यह मंत्र पढ़ें:
ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे.
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम्.
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम्.
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये.
त्रिपुंड को लगाने के लिए तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुली का ही प्रयोग करें और बाएं से दाएं लगाएं.
त्रिपुंड का एक खास उपाय: चंद्र दोष दूर करने के लिए
अगर आपकी कुंडली में चंद्र दोष है या मानसिक अशांति बनी रहती है, तो सावन के सोमवार के दिन एक विशेष उपाय किया जा सकता है.
सबसे पहले शिवलिंग को चंदन से त्रिपुंड लगाएं.
फिर वही चंदन अपने माथे पर त्रिपुंड के रूप में धारण करें.
ऐसा माना जाता है कि शिवजी के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा से जुड़ा यह उपाय मानसिक संतुलन और शांति देता है. कई श्रद्धालु इसे मन की शुद्धि और चित्त की स्थिरता के लिए करते हैं.
– गांव शहर
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