Turram khan

किस्सों-कहावतों के तुर्रम खान (Turram khan) कौन हैं?

New Delhi/Gaon shahar: आपने कभी ना कभी ये कहावत जो जरूर सुनी होगी कि ज्यादा तुर्रम खान (who was turram khan) मत बनो। क्या आप जानते हैं कि यह तुर्रम खान (turram khan) नाम किसी इंसान की कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है। असल में तुर्रम खान का नाम तुर्रेबाज़ खान था। तुर्रेबाज खान का नाम 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। तुर्रम खान एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हैदराबाद में विद्रोह का झंडा बुलंद किया था। तो आइए जानते हैं तुर्रेबाज़ खान की कहानी क्या थी।

कौन थे तुर्रम खान?
turram khan

कौन थे तुर्रेबाज़ खान उर्फ Turram khan ?

ये बात हैदराबाद और भारत की 1857 की क्रांति से जुड़ी है। तुर्रेबाज़ खान हैदराबाद के एक बहादुर योद्धा थे। वे गरीबों और बेसहारों के हमदर्द थे और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए मशहूर थे। जब 1857 में पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग भड़की, तो हैदराबाद भी इससे अछूता नहीं रहा। तुर्रेबाज़ खान ने इसी आंदोलन को हैदराबाद में नई ताकत दी। वह आम जनता के हीरो बन गए और ब्रिटिश हुकूमत के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द। मेरठ में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बगावत होने की खबर जब हैदराबाद पहुंची। तो निजाम से अपील की गई कि वो ब्रिटिश के खिलाफ खड़े हों। हालांकि निजाम अफ़ज़ल-उद-दौला और उनके मंत्री सालार जंग ने अंग्रेजों का साथ दिया। इसके चलते निजाम के सैनिकों ने उनसे बगावत कर दी। तो एक जमादार थे चीदा खान। उन्हें निजाम का फरमान मिला कि सिपाहियों के साथ दिल्ली कूच करना है। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। निजाम के मंत्री ने चीदा खान को धोखे से कैद किया और अंग्रेजों को सौंप दिया। उसे छुड़ाने के लिए रेजिडेंसी हाउस पर बागियों ने हमला बोल दिया। इन बागियों के अगुवा थे तुर्रेबाज खान उर्फ तुर्रम खान।

विद्रोह की शुरुआत

1857 में जब भारत के अलग-अलग हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ जंग छिड़ी, तब तुर्रेबाज़ खान ने भी हैदराबाद के लोगों को एकजुट करना शुरू कर दिया। उन्होंने लोगों से कहा, अब और गुलामी नहीं, हम अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे। तुर्रेबाज़ खान की बातें लोगों के दिलों में उतर गईं। जल्द ही, उनके साथ बड़ी संख्या में किसान, मजदूर और आम लोग जुड़ने लगे।

ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमला

तुर्रेबाज़ खान के नेतृत्व में विद्रोहियों ने सबसे बड़ा कदम उठाया हैदराबाद की ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमला करके। रेजिडेंसी वह जगह थी जहां अंग्रेज अफसर रहते थे और यहां से हैदराबाद की राजनीति को नियंत्रित किया जाता था। तुर्रेबाज़ खान के साथ करीब 6,000 लोग इकट्ठा हुए। 17 जुलाई 1857 को इस विशाल भीड़ ने अंग्रेजों की रेजिडेंसी को घेर लिया। इस हमले ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था।

Turram khan
Turram khan

तुर्रेबाज़ खान और उनके साथियों ने रेजिडेंसी के दरवाजे तोड़ दिए और अंदर घुसने की कोशिश की। इस दौरान भारी गोलीबारी हुई। कई विद्रोही शहीद हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंग्रेजों के पास बेहतर हथियार और गोला बारूद था, इसीलिए यह लड़ाई ज्यादा देर नहीं चल सकी। लेकिन इस हमले ने अंग्रेजों को यह साफ संदेश दे दिया था कि हैदराबाद भी अब बगावत के रास्ते पर है।

Turram khan की गिरफ्तारी और शहादत

रेजिडेंसी पर हमले के बाद तुर्रेबाज़ खान को पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कई चालें चलीं। उनके सिर पर इनाम रखा गया और गुप्तचरों को काम पर लगाया गया। अंततः, ब्रिटिशों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें हैदराबाद की जेल में बंद कर दिया गया। लेकिन अंग्रेज भी जानते थे कि अगर तुर्रेबाज़ खान को कोर्ट में पेश किया गया, तो लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा।

Turram khan
Turram khan

Turram Khan, an unsung hero of the 1857 revolution, played a pivotal role in leading the resistance against the British in Hyderabad. Known for his remarkable courage and sacrifice, Turram Khan fearlessly faced the challenges posed by swords and cannons. His tale is a testament to his bravery and martyrdom in the face of adversity.

इसलिए तुर्रेबाज़ खान की हत्या कर दी गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जेल में उन्हें चुपचाप मार दिया गया और उनकी मौत को लेकर कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया गया। ब्रिटिशों को डर था कि अगर उनकी शहादत की खबर फैली, तो हैदराबाद में और बड़ा विद्रोह हो सकता है।

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क्यों मशहूर है कहावत तुर्रम खान?

आज भी हम किसी व्यक्ति को तुर्रम खान मत बनो कहते हैं तो इसका मतलब होता है बेकार का हीरो मत बनो। लेकिन असल में तुर्रेबाज़ खान कोई बेकार का हीरो नहीं थे, बल्कि वास्तविक हीरो थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वो हिम्मत दिखाई थी, जो उस दौर में करना मौत को बुलावा देने जैसा था। लोग उन्हें याद करते हैं, लेकिन उनकी वीरता की असल कहानी बहुत कम लोगों को मालूम है।

तुर्रेबाज़ खान का योगदान

तुर्रेबाज़ खान की कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों की कहानी है, जिनका नाम इतिहास की किताबों में बहुत कम लिखा गया है। जबकि, उनका योगदान किसी भी बड़े स्वतंत्रता सेनानी से कम नहीं था। उन्होंने हैदराबाद की आम जनता को संगठित किया और उन्हें बताया कि आजादी किसी तोहफे के रूप में नहीं मिलती, बल्कि इसे लड़कर हासिल करना पड़ता है।

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